कितना कम समय निकलकर आया है
मेरे और तुम्हारे लिए
सोचो तो उन लम्हों को उँगलियों पर गिना जा सकता है
मुझे याद है वो सबकुछ
पहले दिन से लेकर अब तक की सारी बातें
इस पूरे ताने बाने में कही भी
कुछ भी तो उलझा हुआ नहीं है
हाँ, इक दूसरे से चिपका हुआ जरुर है
एक सिरा पकड़ो
पूरी की पूरी तस्वीर सामने आ जाती है
यह तस्वीर बिलकुल उसी तस्वीर की माफिक दिखाई देती है
जैसे की अभी किसी के अनघड हाथों ने ब्रुश और रंग से
कुछ बनाने की ताज़ा ताजा कोशिश की हो
जिसमें, अभी भी बहुत से रंग भरने की गुंजाईश बाकी है
न जाने कितनी बातें कहनी बाकी हैं
बिलकुल उन्ही बातों की तरह
जो मैं आज तक नहीं कह पाया
या शायद
वक्त की तेज रफ़्तार सुईयों के बीच वो सबकुछ पिस कर रह गया!