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Tuesday, August 24, 2010

गिरफ्त

घड़ी की तेज रफ़्तार सुईयों की गिरफ्त से 
कितना कम समय निकलकर आया है 
मेरे और तुम्हारे लिए 
सोचो तो उन लम्हों को उँगलियों पर गिना जा सकता है 
मुझे याद है वो सबकुछ 
पहले दिन से लेकर अब तक की सारी बातें 
इस पूरे ताने बाने में कही भी 
कुछ भी तो उलझा हुआ नहीं है 
हाँ, इक दूसरे से चिपका हुआ जरुर है 
एक सिरा पकड़ो 
पूरी की पूरी तस्वीर सामने आ जाती है 
यह तस्वीर बिलकुल उसी तस्वीर की माफिक दिखाई देती है 
जैसे की अभी किसी के अनघड हाथों ने ब्रुश और रंग से 
कुछ बनाने की ताज़ा ताजा कोशिश की हो 
जिसमें, अभी भी बहुत से रंग भरने की गुंजाईश बाकी है 
न जाने कितनी बातें कहनी बाकी हैं 
बिलकुल उन्ही बातों की तरह 
जो मैं आज तक नहीं कह पाया 
या शायद 
वक्त की तेज रफ़्तार सुईयों के बीच वो सबकुछ पिस कर रह गया!

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