जिस्म से जेहन तक
जेहन से जिस्म तक
बस जरा सा फर्क है
अपना अपना तर्क है
होश से मदहोश तक
मदहोश से होश तक
शब्दों का खेल है
अपना अपना मेल है
ख़ुशी से गम तक
गम से ख़ुशी तक
सीढ़ी कोई नहीं जाती
वर्ना दौड़ी चली आती
आसमान से जमीन तक
जमीन से आसमान तक
बस इतनी सी गुंजाइश है
हवा की नुमाइश है
शिकस्त से शिखर तक
शिखर से शिकस्त तक
बस होंसलो की कहानी है
सुनी सुनाई सदियों पुरानी है
अंत से आगाज़ तक
आगाज़ से अंत तक
लम्हों, घंटो, सदियों का सिलसिला है
पेड़ अब भी अपनी जड़ से नहीं हिला है
तेरी मुस्कान में, मेरी पहचान में
मेरी पहचान में तेरी मुस्कान में
बस इक एहसास है
इसी से चलती साँस है...
5 comments:
ख़ुशी से गम तक
गम से ख़ुशी तक
सीढ़ी कोई नहीं जाती
वर्ना दौड़ी चली आती
बहुत खूब ।
ये अहसास ही तो जीवन है बन्धु
सुंदर अभिव्यक्ति. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक साथी यहां पधार सकते हैं - http://gharkibaaten.blogspot.com
उत्तम लेखन… आपके नये ब्लाग के साथ आपका स्वागत है। अन्य ब्लागों पर भी जाया करिए। मेरे ब्लाग "डिस्कवर लाईफ़" जिसमें हिन्दी और अंग्रेज़ी दौनों भाषाओं मे रच्नाएं पोस्ट करता हूँ… आपको आमत्रित करता हूँ। बताएँ कैसा लगा। धन्यवाद...
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