Search This Blog

Friday, July 30, 2010

पहचान

जिस्म से जेहन तक
जेहन से जिस्म तक
बस जरा सा फर्क है
अपना अपना तर्क है
होश से मदहोश तक
मदहोश से होश तक
शब्दों का खेल है
अपना अपना मेल है
ख़ुशी से गम तक
गम से ख़ुशी तक
सीढ़ी कोई नहीं जाती
वर्ना दौड़ी चली आती
आसमान से जमीन तक
जमीन से आसमान तक
बस इतनी सी गुंजाइश है
हवा की नुमाइश है
शिकस्त से शिखर तक
शिखर से शिकस्त तक
बस होंसलो की कहानी है
सुनी सुनाई सदियों पुरानी है
अंत से आगाज़ तक
आगाज़ से अंत तक
लम्हों, घंटो, सदियों का सिलसिला है
पेड़ अब भी अपनी जड़ से नहीं हिला है
तेरी मुस्कान में, मेरी पहचान में
मेरी पहचान में तेरी मुस्कान में
बस इक एहसास है
इसी से चलती साँस है...

5 comments:

Asha Joglekar said...

ख़ुशी से गम तक
गम से ख़ुशी तक
सीढ़ी कोई नहीं जाती
वर्ना दौड़ी चली आती
बहुत खूब ।

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

ये अहसास ही तो जीवन है बन्धु

Sarita said...

सुंदर अभिव्यक्ति. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक साथी यहां पधार सकते हैं - http://gharkibaaten.blogspot.com

Harish Jharia said...

उत्तम लेखन… आपके नये ब्लाग के साथ आपका स्वागत है। अन्य ब्लागों पर भी जाया करिए। मेरे ब्लाग "डिस्कवर लाईफ़" जिसमें हिन्दी और अंग्रेज़ी दौनों भाषाओं मे रच्नाएं पोस्ट करता हूँ… आपको आमत्रित करता हूँ। बताएँ कैसा लगा। धन्यवाद...

Harish Jharia said...

Better disable comment moderation... that will encourage visitors to leave their messages...