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Friday, July 30, 2010

बदस्तूर

अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है
चेहरे दर चेहरे 
कुछ धुंधलाते कुछ याद दिलाते 
वक्त की चाल बड़ी मस्त है 
जब भी मिलते थे बाहे फैलाते 
कभी हसंते कभी रुलाते 
खिस्यते भी झुझंलाते भी 
अलग राग में नया राग सुनते 
सब सच था लगता भी था 
पर अंतिम नहीं था 
फिर आई नई बारी है 
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है 
किताबों में कक्षाओं में 
बहुत सी बातें कई कई रातें 
बीत गईं पढ़ते पढ़ते 
अलिफ़ का अलाह बदल नहीं पाया खुद का चेहरा 
कई चेहरे बदल गये उस चेहरे को गढ़ते गढ़ते 
खुदा का चेहरा ही सच्चा है 
लगता भी था पर अंतिम नहीं था 
फिर आई नई बारी है 
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है 
महात्माओं ने पैग्मंब्रों ने 
नई इबारत के पैगाम सुनाये 
दर्शन के दरश दिखाए 
धरती आकाश हवा पानी 
आग की उठती लपटों से 
नए नए अक्स बनाए
अक्सों की इस बस्ती में 
जो भी आया उसने पाया 
बस्ती फिर बस्तियां बनीं 
बस्तियों ने अपने अपने नगमें गाए
सुर था अपना सच था अपना 
लगता भी था 
पर अंतिम नहीं था 
फिर आई नई बारी है 
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है
मखमली अहसास ने ली अंगड़ाई
यौवन की बसंत ऋतू आई 
जायका अब बदल गया है 
कड़वाहट में कुछ अजब सा घुल गया है 
लबों पे चिपका रहता है 
छूते ही सारी कहानी खुद बा खुद कहता है 
दो कदम साथ चले बीच में ना शिकवे गिले 
सबकुछ सच्चा है 
यही सच है 
लगता भी था
पर अंतिम नहीं था 
फिर आई नई बारी है 
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है..............

6 comments:

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

यही सच है
लगता भी था
पर अंतिम नहीं था
फिर आई नई बारी है
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है..............

Sarita said...

सुंदर अभिव्यक्ति. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक साथी यहां पधार सकते हैं - http://gharkibaaten.blogspot.com

SANSKRITJAGAT said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति


ब्‍लागजगत पर आपका स्‍वागत है ।

किसी भी तरह की तकनीकिक जानकारी के लिये अंतरजाल ब्‍लाग के स्‍वामी अंकुर जी, हिन्‍दी टेक ब्‍लाग के मालिक नवीन जी और ई गुरू राजीव जी से संपर्क करें ।

ब्‍लाग जगत पर संस्‍कृत की कक्ष्‍या चल रही है ।

आप भी सादर आमंत्रित हैं,
http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/ पर आकर हमारा मार्गदर्शन करें व अपने सुझाव दें, और अगर हमारा प्रयास पशंद आये तो हमारे फालोअर बनकर संस्‍कृत के प्रसार में अपना योगदान दें ।
धन्‍यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

कृपया कमेंट्स की सेटिंग्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ..टिप्पणी कराने वालों को सरलता होगी

नीरज गोस्वामी said...

अत्यंत प्रभावशाली रचना है आपकी...बधाई...
नीरज

L.R.Gandhi said...

बाल दिनकर की प्रथम किरण ने पूछा

कौन हो तुम ?

निरुत्तर था मैं....

वृद्ध सूर्य की अंतिम किरण ने पूछा

कौन हो तुम ?

शब्द शून्य था मैं...

अंतिम सच की तलाश बदस्तूर ज़ारी है...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...साधुवाद ... उतिष्ठकौन्तेय