अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है
चेहरे दर चेहरे
कुछ धुंधलाते कुछ याद दिलाते
वक्त की चाल बड़ी मस्त है
जब भी मिलते थे बाहे फैलाते
कभी हसंते कभी रुलाते
खिस्यते भी झुझंलाते भी
अलग राग में नया राग सुनते
सब सच था लगता भी था
पर अंतिम नहीं था
फिर आई नई बारी है
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है
किताबों में कक्षाओं में
बहुत सी बातें कई कई रातें
बीत गईं पढ़ते पढ़ते
अलिफ़ का अलाह बदल नहीं पाया खुद का चेहरा
कई चेहरे बदल गये उस चेहरे को गढ़ते गढ़ते
खुदा का चेहरा ही सच्चा है
लगता भी था पर अंतिम नहीं था
फिर आई नई बारी है
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है
महात्माओं ने पैग्मंब्रों ने
नई इबारत के पैगाम सुनाये
दर्शन के दरश दिखाए
धरती आकाश हवा पानी
आग की उठती लपटों से
नए नए अक्स बनाए
अक्सों की इस बस्ती में
जो भी आया उसने पाया
बस्ती फिर बस्तियां बनीं
बस्तियों ने अपने अपने नगमें गाए
सुर था अपना सच था अपना
लगता भी था
पर अंतिम नहीं था
फिर आई नई बारी है
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है
मखमली अहसास ने ली अंगड़ाई
यौवन की बसंत ऋतू आई
जायका अब बदल गया है
कड़वाहट में कुछ अजब सा घुल गया है
लबों पे चिपका रहता है
छूते ही सारी कहानी खुद बा खुद कहता है
दो कदम साथ चले बीच में ना शिकवे गिले
सबकुछ सच्चा है
यही सच है
लगता भी था
पर अंतिम नहीं था
फिर आई नई बारी है
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है..............
6 comments:
यही सच है
लगता भी था
पर अंतिम नहीं था
फिर आई नई बारी है
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है..............
सुंदर अभिव्यक्ति. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
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बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
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धन्यवाद
मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
कृपया कमेंट्स की सेटिंग्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ..टिप्पणी कराने वालों को सरलता होगी
अत्यंत प्रभावशाली रचना है आपकी...बधाई...
नीरज
बाल दिनकर की प्रथम किरण ने पूछा
कौन हो तुम ?
निरुत्तर था मैं....
वृद्ध सूर्य की अंतिम किरण ने पूछा
कौन हो तुम ?
शब्द शून्य था मैं...
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर ज़ारी है...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...साधुवाद ... उतिष्ठकौन्तेय
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